भगवान श्रीराम हिंदू धर्म के सबसे प्रिय और पूज्य देवता हैं, जिन्हें "मर्यादा पुरुषोत्तम" के रूप में जाना जाता है। श्रीराम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर हुआ था। उनकी कथा रामायण में विस्तार से वर्णित है, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है। श्रीराम का जीवन सत्य, धर्म, और न्याय का प्रतीक है। उन्होंने हमेशा अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि माना और समाज को सच्चाई और धर्म का मार्ग दिखाया। श्रीराम की कथाएँ उनके आदर्शों और नैतिकता को जीवित रखती हैं, जो हर व्यक्ति को सही और गलत के बीच के अंतर को समझाने में मदद करती हैं।
श्रीराम को न केवल देवता के रूप में, बल्कि एक आदर्श पुत्र, भाई, और पति के रूप में भी पूजा जाता है। उनका जीवन संघर्षों से भरा था, फिर भी उन्होंने हर कठिनाई को अपने धर्म और कर्तव्य के प्रति निष्ठा से पार किया। श्रीराम की पत्नी सीता के साथ उनकी प्रेम कहानी और उनके भाई लक्ष्मण के प्रति उनके अटूट स्नेह को भी आदर्श माना जाता है। रामायण में श्रीराम के चरित्र को मानवीय रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो हमें प्रेरित करता है कि जीवन में चाहे जैसे भी हालात हों, हमें हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
भगवान श्रीराम की आरती का विशेष महत्व है, जो उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। श्रीराम की आरती में उनके महान कार्यों, गुणों और उनके जीवन की घटनाओं का उल्लेख किया जाता है, जो भक्तों को प्रेरणा देते हैं। यह आरती न केवल धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा है, बल्कि यह व्यक्ति के मन और आत्मा को शांति और संतुलन प्रदान करती है। जब भक्त श्रीराम की आरती करते हैं, तो वे अपने दिल में उनके आदर्शों को धारण करते हुए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। आरती के माध्यम से भक्त श्रीराम के साथ अपनी भावनाओं का संवाद करते हैं, जिससे उनका मन शांत होता है और वे जीवन के संघर्षों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख पाते हैं। श्रीराम की आरती की यह अनमोल शक्ति हर व्यक्ति के जीवन को दिव्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन एक प्रसिद्ध भजन है जो महान संत और कवि तुलसीदास जी द्वारा रचित है। तुलसीदास जी ने इसे अपने महान काव्य "रामचरितमानस" के संदर्भ में लिखा था। यह भजन श्रीराम के परम दयालु स्वरूप को समर्पित है, और इसे भगवान श्रीराम की स्तुति और आराधना के रूप में गाया जाता है।
यह भजन खास तौर पर भगवान श्रीराम के बारे में बताता है, उनकी महानता, करूणा और रघुकुल के राजा के रूप में उनके सम्मान का वर्णन करता है। इस भजन में भगवान श्रीराम के चरणों में शरण लेने और उनके साथ जीवन के संघर्षों से उबरने की अपील की गई है। तुलसीदास जी ने इसे अपनी काव्यशक्ति से इतनी सुंदरता से लिखा कि यह आज भी भक्तों के दिलों में बसा हुआ है।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं
कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नोमि जनक सुतावरं
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं
शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदारु अङ्ग विभूषणं
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं
इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं
मन जाहि राच्यो मिलहि सो
वर सहज सुन्दर सांवरो
करुणा निधान सुजान शील
स्नेह जानत रावरो
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय
सहित हिय हरषित अली
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली
जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि
मंजुल मंगल मूल वाम
अङ्ग फरकन लगे
Shri Ramchandra Kripalu Bhajman
Haran bhavbhay daarunam
Nav kanj lochan kanj mukh
Kar kanj pad kanjarunam
Kandarpa aganit amit chhavi
Nav neel neerad sundaram
Patpeet maanhun tadit ruchi shuchi
Nomi Janak sutavaram
Bhaju deenbandhu dinesh danav
Daitya vansh nikandanam
Raghunand anand kand koshall
Chand dashrath nandanam
Shir mukut kundal tilak
Charu udaar ang vibhooshanam
Aajanu bhuj shar chaap dhar
Sangram jit kharadushanam
Iti vadati Tulsidas Shankar
Shesh muni man ranjanam
Mam hriday kanj niwas kuru
Kaamadi khaldal ganjanam
Man jaahi raachyo milahi so
Var sahaj sundar saavro
Karuna nidhan sujan sheel
Sneha jaanat raavro
Ehi bhaanti Gauri aasees sun Siya
Sahit hiy harshit ali
Tulsii bhawanihi pooji puni-puni
Mudita man mandir chali
Jaanee Gauri anukool Siya
Hiy harashu na jaai kahi
Manjul mangal mool vaam
Ang farakan lage
श्रीरामचन्द्र की कृपा से परिपूर्ण हृदय से भजिए।
जो संसार के भय और कष्टों का नाश करने वाले हैं।
जिनकी आँखें कमल के समान कोमल और चेहरे पर मुस्कान है।
जिनके हाथ और पैर कमल के समान लाल हैं।
जिनकी रूप की महिमा अनगिनत और अत्यंत सुंदर है, मानो वह कामदेव से भी सुंदर हैं।
जिनका रूप नव नीले बादल की तरह सुंदर है।
जिनके पीले वस्त्र आकाश की बिजली के समान चमकते हैं।
मैं जनक के पुत्र श्रीराम का पूजन करता हूँ, जो सर्वोत्तम हैं।
वह दीनों के बंधु और सूर्य (दिनेश) हैं, जो दानवों का संहार करते हैं।
जो राक्षसों के वंश का नाश करने वाले हैं।
वह रघुकुल के नंदन (पुत्र) और आनंद के कंद (स्रोत) हैं, जो कोशल देश के राजा हैं।
वह दशरथ के नंदन (पुत्र) हैं।
उनके सिर पर मुकुट और कानों में कुण्डल हैं, और वे सुंदर तिलक से अलंकृत हैं।
उनके अंग सुंदर और उदार हैं, जो विभूषण से सुसज्जित हैं।
जिनके पास आज्ञा (सशक्त) भुजाएं और वे धनुष-बाण धारण करते हैं।
जो युद्ध में खर और दूषण (राक्षसों) को पराजित करते हैं।
तुलसीदास जी ने इस प्रकार कहा है, जो शंकर (शिव) के परम भक्त हैं।
जो शेष मुनियों के ह्रदय को प्रसन्न करते हैं।
मेरे ह्रदय के कमल में निवास करें।
और काम, क्रोध आदि नकारात्मक गुणों का नाश करें।
जिस किसी का मन जिस कार्य में संलग्न है, उसे वह कार्य प्राप्त होता है।
वह वर (उत्तम) रूप में सहज और सुंदर हैं, सांवले रंग के साथ।
वह करुणा के सागर, सुजान और शील (नम्रता) से परिपूर्ण हैं।
वह अपने भक्तों के स्नेह को जानते हैं और उनका सम्मान करते हैं।
इस प्रकार गौरी (पार्वती) ने भगवान श्रीराम को आशीर्वाद दिया, और सीता जी ने भी इसे सुना।
उनका हृदय हरस (प्रसन्न) हो गया।
तुलसीदास जी ने भगवान राम की पूजा बार-बार की।
उनका मन प्रसन्न था और वह मंदिर में चले गए।
पार्वती ने जान लिया कि सीता जी के लिए यह अनुकूल है।
उनके ह्रदय में कोई दुःख नहीं था, केवल प्रसन्नता थी।
वह मंगलमूल (सम्पूर्ण कल्याण) के आदि हैं, और उनके बाएँ हाथ में सब कुछ शुभ है।
उनके अंग सुंदर और विशाल हैं, जो परिलक्षित होते हैं।
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