भगवान शिव, जिन्हें भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, भक्ति, प्रेम और मोक्ष का प्रतीक हैं। वे संहारक और पुनर्सर्जन के देवता हैं। उनके नाम का स्मरण ही मन और आत्मा को शुद्ध करता है। शिव की महिमा का बखान करने वाले अनगिनत भजन और स्तोत्र हैं, जिन्हें सुनने और गाने से भक्ति का अद्भुत अनुभव होता है।
यहां हम भोले बाबा के 5 प्रमुख भजनों पर चर्चा करेंगे। हालांकि, यह समझना ज़रूरी है कि भजनों को रैंक करना उचित नहीं है। हर भजन की अपनी अलग महत्ता, अर्थ और भक्ति रस है। ये सभी भजन भगवान शिव की विभिन्न विशेषताओं और दिव्यता को प्रकट करते हैं।
"ओम नमः शिवाय" शिव का पंचाक्षरी मंत्र है, जो न-म-शि-वा-य से बना है। यह मंत्र शिव को समर्पित सबसे सरल और प्रभावशाली मंत्रों में से एक है। इसे जपने से मन को शांति मिलती है और आत्मा शुद्ध होती है। यह भजन शिव भक्ति के सबसे प्राचीन रूपों में से एक है।
इस मंत्र की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई। इसे किसी एक व्यक्ति ने नहीं लिखा बल्कि यह वेदों से लिया गया है। यजुर्वेद और रुद्राष्टाध्यायी में इस मंत्र का उल्लेख मिलता है।
इस मंत्र को कई महान गायकों ने अपनी आवाज दी है, जिनमें अनुराधा पौडवाल, पंडित जसराज, और हरिहरन प्रमुख हैं। यह मंत्र समय के साथ इतना लोकप्रिय हुआ कि आज भी शिव भक्तों के लिए यह मंत्र उनकी भक्ति का अभिन्न हिस्सा है। नई पीढ़ी के भक्तों के लिए, अगम अग्रवाल का संस्करण भी एक पसंदीदा विकल्प बन गया है, जो शिव भक्ति को युवाओं के बीच नए अंदाज में प्रचलित कर रहा है। उनकी शैली ने मंत्र को आधुनिक साउंडस्केप के साथ जोड़कर भक्ति के अनुभव को और समृद्ध बनाया है।
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
रामेश्वराय, शिव, रामेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
रामेश्वराय, शिव, रामेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
जटाधराय, शिव, जटाधराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
जटाधराय, शिव, जटाधराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
गंगाधराय, शिव, गंगाधराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
गंगाधराय, शिव, गंगाधराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
सोमेश्वराय, शिव, सोमेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
सोमेश्वराय, शिव, सोमेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
विश्वेश्वराय, शिव, विश्वेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
विश्वेश्वराय, शिव, विश्वेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
कोटेश्वराय, शिव, कोटेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
कोटेश्वराय, शिव, कोटेश्वराय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
हर-हर भोले, नमः शिवाय
"शिव स्तुति" शिव की करुणा, उनके शांत स्वरूप और उनकी शक्ति का वर्णन करती है। यह भजन शिव के प्रति प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है। "शिव स्तुति" की रचना महाकवि कालिदास ने की। यह स्तुति उनकी प्रसिद्ध रचना कुमारसम्भवम् में मिलती है। यह भजन संस्कृत साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों में से एक है।
इस भजन को लता मंगेशकर, येसुदास, और अनूप जलोटा जैसे महान गायकों ने गाया। इनकी भावपूर्ण आवाज ने इस भजन को अमर कर दिया। अलग-अलग कलाकारों ने इसे अपनी प्रस्तुति में अलग-अलग शीर्षक देकर अपलोड किया है, जिससे इसे भिन्न रूपों में सुनने का अनुभव मिलता है। नई पीढ़ी के भक्तों के लिए, यूट्यूब पर Religious India द्वारा अपलोड किया गया इसका संस्करण भी बेहद लोकप्रिय है, जो इसे आधुनिक समय में नई ऊर्जा और भक्ति का स्रोत बना रहा है।
ॐ महादेवाय नमो नमः
अदिनाथाय नमो नमः
भोलेनाथाय नमो नमः
महायोगी नमो नमः
"लिंगाष्टकम" शिवलिंग की महिमा का वर्णन करता है। यह भजन शिवलिंग को ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और संहार का प्रतीक मानते हुए लिखा गया है। इस भजन की रचना आदि शंकराचार्य ने की। उन्होंने इसे अद्वैत दर्शन के सिद्धांतों को स्पष्ट करने के लिए लिखा। "लिंगाष्टकम" को कई प्रमुख गायकों ने अपनी आवाज दी है। एस.पी. बालासुब्रमण्यम और मधु बालकृष्णन ने इसे सबसे प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया। आदि शंकराचार्य के समय, भारत में धार्मिक विविधता के बीच हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता थी। "लिंगाष्टकम" जैसे भजन उस समय शिव भक्ति को संगठित और प्रेरित करने के लिए लिखे गए। आदि शंकराचार्य के समय, भारत में धार्मिक विविधता के बीच हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता थी। "लिंगाष्टकम" जैसे भजन उस समय शिव भक्ति को संगठित और प्रेरित करने के लिए लिखे गए। नई पीढ़ी के भक्तों के लिए, अगम अग्रवाल का संस्करण भी एक पसंदीदा विकल्प बन गया है, जो शिव भक्ति को युवाओं के बीच नए अंदाज में प्रचलित कर रहा है।
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं ने पूजा है। यह पवित्र और तेजोमय है। यह जन्म और मृत्यु के दुखों को समाप्त करने वाला है।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जिसकी पूजा देवता और श्रेष्ठ ऋषि करते हैं। यह इच्छाओं का दहन करने वाला और करुणा का सागर है। यह रावण के अहंकार को नष्ट करने वाला है।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जो सुगंधित चंदन से अलंकृत है। यह बुद्धि बढ़ाने का कारण है। इसे सिद्ध, देवता और असुर सब पूजते हैं।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जो सोने और बहुमूल्य रत्नों से सुशोभित है। इसे नागराज ने घेर रखा है। यह दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाला है।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जो कुमकुम और चंदन से लेपित है। यह कमल के फूलों और गहनों से शोभायमान है। यह संचित पापों का नाश करने वाला है।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जिसे देवगण पूजते और सेवा करते हैं। यह भाव और भक्ति से पूजा जाता है। इसकी चमक करोड़ों सूर्यों के समान है।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जो अष्टदल कमल से घिरा है। यह संसार के उत्पत्ति का कारण है। यह आठ प्रकार की दरिद्रताओं को नष्ट करता है।
मैं उस शिवलिंग को प्रणाम करता हूं, जिसे देवताओं के गुरु और श्रेष्ठ देवता पूजते हैं। यह दिव्य पुष्पों से सदा पूजा जाता है। यह परमात्मा का प्रतीक और सबका परे है।
जो कोई शिवजी के सामने इस पवित्र लिंगाष्टक का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिवजी के साथ आनंदित होता है।
"निर्वाण अष्टकम" आत्मा और शिव के अद्वैत संबंध को प्रकट करता है। यह भजन हमें यह सिखाता है कि शिव और आत्मा एक ही हैं। "निर्वाण अष्टकम" की रचना भी आदि शंकराचार्य ने की। यह उनकी अद्वैत वेदांत दर्शन की शिक्षा का हिस्सा है। इस भजन को कृष्णदास और रवि शंकर जैसे कलाकारों ने प्रस्तुत किया। यह भजन उस समय लिखा गया जब लोग आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझने का प्रयास कर रहे थे। आदि शंकराचार्य ने इस भजन के माध्यम से मोक्ष के मार्ग को सरल और स्पष्ट किया। नई पीढ़ी के भक्तों के लिए, अगम अग्रवाल का संस्करण भी एक पसंदीदा विकल्प बन गया है।
मनो बुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।
न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पंचकोशः।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
न मे वै मदो नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम्
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदाः न यज्ञः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः।
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपः
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।
श्लोक 1:
मैं मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त नहीं हूं। मैं कान, जीभ, नाक और आँखें भी नहीं हूं। न मैं आकाश हूं, न धरती, न अग्नि और न वायु। मैं चिदानंद (शुद्ध चेतना और आनंद) स्वरूप हूं। मैं शिव हूं, शिव हूं।
श्लोक 2:
मैं प्राणों का समूह, पंच वायुएँ, सप्त धातु और पंच कोश नहीं हूं। मैं न वाणी हूं, न हाथ, न पैर और न अन्य इंद्रियाँ। मैं चिदानंद स्वरूप हूं। मैं शिव हूं, शिव हूं।
श्लोक 3:
मुझे न द्वेष और न राग है। न लोभ और न मोह है। न मुझे अभिमान है और न ही ईर्ष्या। न मैं धर्म हूं, न अर्थ, न काम और न मोक्ष। मैं चिदानंद स्वरूप हूं। मैं शिव हूं, शिव हूं।
श्लोक 4:
मैं पुण्य और पाप से परे हूं। मैं न सुख हूं और न दुःख। न मैं मंत्र हूं, न तीर्थ, न वेद और न यज्ञ। न मैं भोजन हूं, न भोज्य पदार्थ और न ही भक्षक। मैं चिदानंद स्वरूप हूं। मैं शिव हूं, शिव हूं।
श्लोक 5:
मुझे मृत्यु का भय नहीं है। मैं जाति, पिता, माता और जन्म से परे हूं। न मेरा कोई बंधु है, न मित्र, न गुरु और न शिष्य। मैं चिदानंद स्वरूप हूं। मैं शिव हूं, शिव हूं।
श्लोक 6:
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं। मैं सर्वत्र और सर्व इंद्रियों में विद्यमान हूं। मुझे न बंधन है और न मुक्ति की चाह। मैं चिदानंद स्वरूप हूं। मैं शिव हूं, शिव हूं।
"शिव रुद्राष्टकम" शिव की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तुति शिव की महानता, उनकी करुणा और उनके संहारक रूप को प्रकट करती है। "रुद्राष्टकम" की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की। यह भजन रामचरितमानस के अयोध्या कांड में शामिल है। इस भजन को अनूप जलोटा और हरिहरन जैसे कलाकारों ने गाया। यह भजन भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है। रुद्राष्टकम का अगम अग्रवाल का संस्करण या Spiritual Mantra द्वारा यूट्यूब पर अपलोड किया गया संस्करण नए पीढ़ी के बीच बेहद लोकप्रिय हो सकता है।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्
निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो
मैं निर्वाणस्वरूप भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ
ईश्वर ब्रह्म वेद का व्यापक स्वरूप है।
उसका अपना, पारलौकिक, निःस्वार्थ रूप है।
मैं चेतना के आकाश में निवास करने वाले भगवान शिव की पूजा करता हूँ।
निराकार, मौनकार, जड़ और चौथी है
पहाड़ों के भगवान, जो शब्दों के ज्ञान से परे हैं।
भयानक, महान, समय और दयालु,
मैं गुणों की दुनिया से परे झुकता हूँ।
वह बर्फ के पहाड़ की तरह सफ़ेद और गहरा था,
शरीर में लाखों मनों और प्राणियों की चमक थी।
स्फुरन्मूलिकल्लोलिनि चारुगंगा,
चमकती दाढ़ी वाला सांप और गले में चंद्रमा था।
उसके कानों में घूमती हुई बालियाँ और भौंहों के साथ बड़ी-बड़ी आँखें थीं।
उसका चेहरा प्रसन्नचित्त, नीला गला और दयालु हृदय था।
उसने हिरण की खाल पहन रखी थी और सिर पर टोपी रखी थी।
मैं सभी के स्वामी, अपने प्रिय भगवान शिव की पूजा करता हूँ।
जबरदस्त, उत्कृष्ट, गौरवशाली, देवताओं के भगवान,
अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान।
तीन भालों वाला विनाशक, भालाधारी,
मैं उस देवी की पूजा करता हूँ, जो भावना से प्राप्त की जा सकती है।
कलाहीन कल्याण ही युग का अंत है,
पुरारी, सदा धर्मियों को आनंद देने वाले।
चिदानंदसंदोहा भ्रमवादी,
कृपा करो, कृपा करो प्रभु मन्मथरि।
उमा नाथ के चरण कमलों तक नहीं,
वे इस दुनिया में या अगले दुनिया में पुरुषों की पूजा करते हैं।
सुख उतना नहीं जितना शांति और दुःख निवारण,
दया करो, हे भगवान, सभी प्राणियों के निवास स्थान।
मैं योग, जप, पूजा-पाठ नहीं जानता,
हे शम्भू, मैं सदैव आपको प्रणाम करता हूँ।
बुढ़ापे और जन्म की बाढ़ से पीड़ित,
भगवान, मेरी रक्षा करें, भगवान शंभो।
भोले बाबा के ये भजन आत्मा को शांति प्रदान करते हैं और भक्ति के मार्ग को सरल बनाते हैं। हर भजन हमें शिव के किसी न किसी स्वरूप से जोड़ता है। इन भजनों का गान हमारे जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। भजन का महत्व सिर्फ इसके शब्दों में नहीं, बल्कि उसकी भक्ति भावना में है।
यह ब्लॉग ए.आई. उपकरणों का उपयोग करके लिखा गया है, और अनुवाद के लिए गूगल ट्रांसलेट का सहारा लिया गया है। हालांकि सहीता सुनिश्चित करने के लिए पूरी कोशिश की गई है, फिर भी कुछ मूल सामग्री के बारीक बिंदु पूरी तरह से नहीं हो सकते हैं। कृपया इस बात को ध्यान में रखते हुए ब्लॉग को पढ़ें।
भगवान श्रीराम हिंदू धर्म के सबसे प्रिय और पूज्...
भगवान विष्णु, जो ब्रह्माण्ड के पालनहार और रक्ष...
Lord Vishnu, the preserver and protector of th...
The Rama-Lakshmana-Parashurama dialogue in the...
रामायण के बालकाण्ड में राम-लक्ष्मण-परशुराम संव...
आदि शंकराचार्य भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परंप...